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02:31, 17 दिसम्बर 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अहमद फ़राज़
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[[Category:गज़ल]]
<poem>
दिल बहलता है कहाँ अंजुम-ओ-महताब से भी
अब तो हम लोग गए दीदा-ए-बेख़्वाब से भी
रो पड़ा हूँ तो कोई बात ही ऐसी होगी
मैं के वाक़िफ़ था तेरे हिज्र के आदाब से भी
कुछ तो उस आँख का शेवा है खफ़ा हो जाना
और कुछ भूल हुई है दिल-ए-बेताब से भी
ऐ समंदर की हवा तेरा करम भी मालूम
प्यास साहिल की तो बुझती नहीं सैलाब से भी
कुछ तो उस हुस्न को जाने है ज़माना सारा
और कुछ बात चली है मेरे एहबाब से भी
</poem>