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{{KKRachna
|रचनाकार=अहमद फ़राज़
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[[Category:गज़ल]]
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तुझसे मिलने को कभी हम जो मचल जाते हैं
तो ख़्यालों में बहुत दूर निकल जाते हैं

गर वफ़ाओं में सदाक़त भी हो और शिद्दत भी
फिर तो एहसास से पत्थर भी पिघल जाते हैं

उसकी आँखों के नशे में हैं जब से डूबे
लड़-खड़ाते हैं क़दम और संभल जाते हैं

बेवफ़ाई का मुझे जब भी ख़याल आता है
अश्क़ रुख़सार पर आँखों से निकल जाते हैं

प्यार में एक ही मौसम है बहारों का मौसम
लोग मौसम की तरह फिर कैसे बदल जाते हैं
</poem>
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