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02:39, 17 दिसम्बर 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अहमद फ़राज़
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[[Category:गज़ल]]
<poem>
नहीं जो दिल में जगह तो नज़र में रहने दो
मेरी हयात को अपने असर में रहने दो
कोई तो ख़्वाब मेरी रात का मुक़द्दर हो
कोई तो अक्स मेरी चश्म-ए-तर में रहने दो
मैं अपनी सोच को तेरी गली मैं छोड़ आया
तो अपनी याद को मेरे हुनर में रहने दो
ये मंजिलें तो किसी और का मुक़द्दर हैं
मुझे बस अपने जूनून के सफ़र में रहने दो
हकीक़तें तो बहुत तल्ख़ हो गयी हैं "फ़राज़"
मेरे वजूद को ख़्वाबों के घर में रहने दो
</poem>