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08:17, 17 दिसम्बर 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अहमद फ़राज़
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<poem>
गेसू-ए-शाम में एक सितारा एक ख़याल
दिल में लिए फिरते हैं तुम्हारा एक ख़याल
बाम-ए-फ़लक़ पर सूरज, चाँद, सितारे था
हम ने बेयाज़-ए-दिल पे उतारा एक ख़याल
कभी तो उन को भी देखो, जिन लोगों ने
उम्र गंवाई और संवारा एक ख़याल
याद के शहर के शोर से काले कोसों दूर
दश्त-ए-फ़रामोशी से पुकारा एक ख़याल
यूँ भी हुआ है दिल के मुक़ाबिल दुनिया थी
फिर भी ना हारा फिर भी ना हारा एक ख़याल
मुझ पर ज़राब पड़ी तो ख़ल्क़त ने देखा
मेरी बजाये पड़ा पड़ा एक ख़याल
एक मुसाफ़त, एक उदासी, एक 'फ़राज़'
एक तमन्ना, एक शरारा, एक ख़याल
</poem>