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वो ही तूफानों से बचते हैं, निकल जाते हैं / श्रद्धा जैन
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03:41, 23 दिसम्बर 2010
हमको ज़ख़्मों की नुमाइश का कोई शौक नहीं
मेरी
कैसे
ग़ज़लों में मगर आप ही ढल जाते हैं
</poem>
Shrddha
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