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कविता-8 / रवीन्द्रनाथ ठाकुर

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{{KKGlobal}}{{KKAnooditRachna|रचनाकार== रवीन्द्रनाथ ठाकुर}}{{KKCatKavita‎}}[[Category:बांगला]]<poem>'''पिंजरे की चिड़िया थी .. ==''' <poem>पिंजरे की चिड़िया थी सोने के पिंजरे में
वन कि चिड़िया थी वन में
एकदिन एक दिन हुआ दोनों का सामना
क्या था विधाता के मन में
वन की चिड़िया कहे सुन पंजरे पिंजरे की चिड़िया रे वन में उड़े उड़ें दोनों मिलकरपिंजरे की चिड़िया कहे वन की चिड़िया रे
पिंजरे में रहना बड़ा सुखकर
वन की चिड़िया कहे ना ...... मैं पिंजरे में कैद क़ैद रहूँ क्योंकर
पिंजरे की चिड़िया कहे हाय
निकलूँ मैं कैसे पिंजरा तोड़कर
वन की चिड़िया गाये गाए पिंजरे के बाहर बैठे
वन के मनोहर गीत
पिंजरे की चिड़िया गाये गाए रटाये रटाए हुए जितने
दोहा और कविता के रीत
कुछ दोहे तुम भी लो सीख
वन की चिड़िया कहे ना ........... तेरे सिखाये सिखाए गीत मैं ना गाऊंगाऊँ
पिंजरे की चिड़िया कहे हाय!
मैं कैसे वनगीत गाऊंगाऊँ
वन की चिड़िया कहे नभ का रंग है नीला
उड़ने में कहीं नहीं है बाधा
पिंजरे की चिड़िया कहे पिंजरा है सुरक्षित
रहना है सुखकर ज्यादाज़्यादा
वन की चिड़िया कहे अपने को खोल दो
बादल के बीच, फिर देखो
पिंजरे की चिड़िया कहे अपने को बांधकरबाँधकर
कोने में बैठो, फिर देखो
वन की चिड़िया कहे ना....... ऐसे में मैं उड़ पाऊँ ना रे
पिंजरे की चिड़िया कहे हाय
बैठूं बैठूँ बादल में मैं कहाँ रे
ऐसे ही दोनों पाखी बातें करे करें रे मन की
पास फिर भी ना आ पाए रे
पिंजरे के अन्दर से स्पर्श करे रे मुख से
नीरव आँखे सबकुछ कहे सब कुछ कहें रे
दोनों ही एक दूजे को समझ ना पाए पाएँ रे ना खुद ख़ुद समझा पाए पाएँ रे
दोनों अकेले ही पंख फड़फड़आये फड़फड़ाएँ
कातर कहे पास आओ रे
वन की चिड़िया कहे ना............
पिंजरे का द्वार हो जाएगा रुद्ध
पिंजरे की चिड़िया कहे हाय
मुझमे शक्ति नही है उडूं खुद उडूँ ख़ुद
गुरुदेव रविन्द्र नाथ ठाकुर द्वारा रचित काव्य का काव्यानुवाद मूल बांगला से अनुवाद : </poem>
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