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<poem>
अजब था उसकी दिलज़ारी का अन्दाज़
वो बरसो बरसों बाद जब मुझ से मिला है
भला मैं पूछता उससे तो कैसे
बताए जा मताए-जां तुम्हारा नाम क्या है?
साल-हा-साल और एक लम्हा
कोई भी तो नहीं में न इनमें बल आया
खुद ही एक दर पे मैंने दस्तक दी
खुद ही लड़का सा मैं निकल आया
दौर-ए-वापस तही गुज़ार के मैं
अहद-ए-वापस तगी को भूल गया
यनी तू यानी तुम वो हो, वाकई, हद है
मैं तो सच-मुच सभी को भूल गया
रिश्ता-ए-दिल तेरे ज़माने में
रस्म ही क्या निबहनी निबाहनी होती
मुस्कुराए, हम उससे मिलते वक्त
रो न पड़ते अगर खुशी होती
दिन मे में जिनका निशान भी न रहाक्यू क्यूं चेहरो चेहरों पर वो रंग खिले अब तो खाली है रूह, जस्बो जज़्बों से
अब भी क्या हम तबाद से न मिले
शर्म, दहशत, झिझक, परेशानी
नाज़ से काम क्यो क्यों नहीं लेती लेतीं
आप, वो, जी, मगर ये सब क्या है
तुम मेरा नाम क्यो क्यों नहीं लेती लेतीं
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