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17:17, 29 दिसम्बर 2010 <poem>प्यार की पीर को समझता हूँ
जुर्मो ताजीर को समझता हूँ
साफगोई से बात कर प्यारे
तंज के तीर को समझता हूँ
ख्वाब मैं देखता नहीं यूँ भी
क्योंकि ताबीर को समझता हूँ
जुल्फ क्या है मुझे पता है सब
यानि जंजीर को समझता हूँ
खून हैं तो जरूर बोलेगा
खूं की तासीर को समझता हूँ
आके बस्ती में आग बाँटेगा
उसकी तक़रीर को समझता हूँ
मैंने उर्दू नहीं पढ़ी लेकिन
ग़ालिब ओ मीर को समझता हूँ</poem>