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17:19, 29 दिसम्बर 2010 <poem>हमारी आँख जो पुरनम नहीं है
न समझो हमको कोई गम नहीं है
ये कह कर रोकते हैं आँसुओं को
अभी बरसात का मौसम नहीं हैं
खुदा है आसमानों पर अभी तक
तेरी आवाज में ही दम नहीं है
सियासत रास आयी है उसी को
जो अपनी बात पर कायम नहीं है
हमारी बात में अब 'मै' ही 'मै' है
हमारी बात में अब 'हम' नहीं है
मेरी बिटिया गयी ससुराल जब से
मेरे आँगन में वो छम छम नहीं है
कोई भगवान है सुनते है लेकिन
अब इस अफवाह में कुछ दम नहीं है</poem>