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<poem>वक्त का तीर चल गया देखो
पल में मंजर बदल गया देखो

उसकी नजरों में वो हरारत थी
मोम सा मैं पिघल गया देखो

हौंसला ठोकरों से लेकर मैं
गिरते गिरते संभल गया देखो

घर जलाने को वो जला तो गया
हाथ उसका भी जल गया देखो

बेवफ़ा खुद को उसने मान लिया
दिल से कांटा निकल गया देखो

तुम न आये तुम्हें न आना था
एक दिन और ढल गया देखो </poem>
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