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<poem>वो मेरी आँख में खुशरंग ख़्वाब छोड़ गया
उजाड़ कब्र पे ताजा गुलाब छोड़ गया

ये किसने उसको अँधेरे गिना दिए मेरे
वो मेरे नाम कई आफ़ताब छोड़ गया

वो खुद तो मर के सितारों में बस गया लेकिन
जमीं के हक़ में कई इंकलाब छोड़ गया

खुलूसो प्यार के औराक फाड़ कर सारे
वो मेरे हाथ में खाली किताब छोड़ गया

ख़ुशी है वस्ल की ज्यादा या गम जुदाई का
मेरे लगाने को कितना हिसाब छोड़ गया

कि रख के बंद लिफाफे में टुकड़ा पत्थर का
'अनिल' वो आज तेरे ख़त का जवाब छोड़ गया</poem>
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