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शबे गम की सहर नहीं होती / कुमार अनिल
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01:37, 2 जनवरी 2011
<poem>शबे गम की सहर नहीं होती
जिन्दगी अब बसर नहीं होती
हर कोई पढ़ ले जिन्दगी की किताब
इतनी भी मुख़्तसर नहीं होती
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Kumar anil
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