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03:51, 3 जनवरी 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लाला जगदलपुरी
|संग्रह=मिमियाती ज़िन्दगी दहाड़ते परिवेश / लाला जगदलपुरी
}}
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<poem>
उन्मन हैं मनचीते लोग,
वर्तमान के बीते लोग।
भीतर भीतर मर मर कर,
बाहर बाहर जीते लोग।
निराधार खून देख कर
घूंट खून के पीते लोग।
और उधर जलसों की धूम
काट रहे हैं फीते लोग।
भाव शून्य शब्दों का कोश,
बाँट रहे हैं रीते लोग।
</poem>