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|संग्रह=कविता लौट पड़ी / कैलाश गौतम
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छुट्टियाँ होती हैं लेकिन
क्या बताएँ छुट्टियों में हम
अब नहीं घर से निकलते
रंग लेकर राग लेकर
एक आदिम आग लेकर
मुट्ठियों में हम ।
छुट्टियाँ होती हैं लेकिन<br>धूप-झरना, फूल-पत्तेक्या बतायें छुट्टियों में हम<br>गुनगुनाती घाटियाँले गईं सब कुछ उड़ाकरसभ्यता की आँधियाँअब नहीं घर से निकलते<br>गृहस्थी दोस्त दफ़्तररंग लेकर राग लेकर<br>बोझ सब लगते समय परएक आदिम आग लेकर<br> जी रहे बस औपचारिकमुट्ठियों चिट्ठियों में हम।<br><br>हम ।
धूप-झरना, फूल-पत्ते<br>गुनगुनाती घाटियाँ<br>ले गईं सब कुछ उड़ाकर<br>सभ्यता की आंधियाँ<br>घर गृहस्थी दोस्त दफ्तर<br>बोझ सब लगते समय पर<br>जी रहे बस औरचारिक<br>चिट्ठियों में हम।<br><br> कल्पनायें कल्पनाएँ प्रेम की<br> संवेदनायें संवेदनाएँ प्रेम की<br>विज्ञापनों में आ गईं<br>सारी ऋचायें ऋचाएँ प्रेम की<br>थे गीत-वंशी कहकहे<br>क्या-क्या नहीं भोगे सहे<br> ईंधन हुये<br>हुए कैसा समय की<br> भट्ठियों में हम।हम ।</poem>
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