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|संग्रह=कविता लौट पड़ी / कैलाश गौतम
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बरसों बाद मिला है कोई
कहाँ छिपाऊँ मैं,
केवल उसे निहारूँ या
फिर-फिर बतियाऊँ मैं ।
बरसों बाद मिला तनिक न बदला वही हूँ बहूपहले जैसा है कोई<br>कहाँ छिपाऊँ मैं,<br>बतियाने का लहज़ा भीकेवल उसे निहारूँ या<br>जैसा का तैसा हैफिर-फिर बतियाऊँ मैं।<br><br>सोच रहाहँसते चेहरे कोऔर हँसाऊँ मैं ।
तनिक न बदला वही हू बहू<br>थोड़ी सी कुछ टूटन-जैसीपहले जैसा है<br>मन में झलक रहीबतियाने का लहजा भी<br>बरसी नहीं घटा कजरारीजैसा का तैसा है<br>क्यारी नहीं बहीसोच रहा<br>असमंजस मेंहँसते चहरे को<br>घिरा हुआ हूँऔर हँसाऊँ मैं।<br><br>क्या बतलाऊँ मैं ।
थोड़ी सी कुछ टूटन जैसी<br>मन में झलक रही<br>बरसी नहीं घटा कजरारी<br>क्यारी नहीं बही<br>असमंजस में<br>घिरा हुआ हूँ<br>क्या बतलाऊँ मैं।<br><br> बीते दिन भी इस मौके मौक़े पर<br>ऐसे घेरे रहे,<br>फेर रहे हैं हाथ प्राण पर<br>मन से टेर रहे,<br>क्या-क्या फूँकूँ<br>एक सांस साँस में<br>क्या-क्या गाऊँ मैं।मैं ।</poem>
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