|संग्रह=
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[[Category:गीत]]{{KKCatNavgeet}}<poem>
स्वयं विचरते रहे सदा स्वच्छन्द दिशाओं में
हम सबको उलझाए रक्खा नीति-कथाओं में ।
हम सबको उलझाये रक्खा नीति-कथाओं में। हर पीढ़ी में छले गये गए हम
गुरुओं-प्रभुओं से
जीए भी तो इनके ही
खूँटे पर पशुओं से
घुट-घुट कर रह गई हमारी चीख़ गुफ़ाओं में ।
जीये भी तो इनके ही खूंटे पर पशुओं से घुट-घुट कर रह गयी हमारी चीख गुफाओं में इन्हीं महन्तोंमहंतों-संतों ने
कठघरा बनाया है
पाप-पुण्य औ स्वर्ग-नरक
इनकी ही माया है
अपने रहते प्रावधान से ये धाराओं में।में ।
हम होते हैं हवन
और ये होता होते हैं
कान फूंकते जहांफूँकते जहाँ वहां वहाँ हम श्रोता होते हैं जनम-जनम यजमान सरीखे हम अध्यायों में।में ।
जैसे गोरे वैसे काले
कोई फर्क फ़र्क़ नहीं
सुनते जाओ करते जाओ
तर्क-वितर्क नहीं
कभी नहीं बर्दाश्त इन्हें अपनी सुविधाओं में।में ।</poem>