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|संग्रह=
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[[Category:गीत]] {{KKCatNavgeet}}<poem>
सिर पर आग
 
पीठ पर पर्वत
 
पाँव में जूते काठ के
 क्या कहने इस ठाठ के।।के ।।
यह तस्वीर
 नयी नई है भाई 
आज़ादी के बाद की
 जितनी कीमतक़ीमत
खेत की कल थी
 उतनी कीमतक़ीमत
खाद की
 
सब
 
धोबी के कुत्ते निकले
 
घर के हुए न घाट के
 क्या कहने इस ठाठ के।।के ।।
बिना रीढ़ के
 
लोग हैं शामिल
 
झूठी जै-जैकार में
 
गूँगों की
 फरियाद फ़रियाद खड़ी है 
बहरों के दरबार में
 
खड़े-खड़े
 
हम रात काटते
 
खटमल
 
मालिक खाट के
 क्या कहने इस ठाठ के।।के ।।
मुखिया
 
महतो और चौधरी
 
सब मौसमी दलाल हैं
 
आज
 
गाँव के यही महाजन
 यही आज खुशहाल ख़ुशहाल हैं 
रोज़
 
भात का रोना रोते
 
टुकड़े साले टाट के
 क्या कहने इस ठाठ के।।के ।।</poem>
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