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कुछ और मुक्तक / कुमार अनिल

171 bytes added, 14:50, 4 जनवरी 2011
{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=कुमार अनिल|संग्रह=}}{{KKCatKataa‎}}<poemPoem> 1. कांटो काँटो के बीच रह कर, खुश ख़ुश हैं गुलाब हैं हमटेढे टेढ़े सवाल का भी सीधा जवाब हैं हमन तो हमको पढना पढ़ना मुश्किल, न हमें समझना मुश्किलपूरी तरह से यारो, खुली इक किताब क़िताब हैं हम
2.
मुश्किल बहुत है माना, आसान बनके देखें
हम इस नये नए समय की पहचान बनके देखें
हिंदू, मुसलमां यारो बन लेंगे फिर कभी हम
आओ कि इस घडी घड़ी बस इन्सान बनके देखें
3.
सुलगा रहा जो हमको ठंडा वो ताप कर दें
दिल में जमे कलुष को हिलमिल के साफ साफ़ कर देंकि ये वक्त वक़्त है खुशी ख़ुशी का, अवसर है दोस्ती काइक दूसरे को आओ, हम दोनों माफ माफ़ कर दें
4.शिकवे शिकायतें सब, आओ कि भूल जायेंजाएँइन अन्धी बस्तियों में दीपक नये नए जलायेंजलाएँये दूरियां दूरियाँ दिलों की, मिट जायेंगी जाएँगी स्वयं हीकुछ तुम करीब क़रीब आओ, कुछ हम करीब आयेंक़रीब आएँ
5.
गीतों की वादियों में आओ टहल के देखें
इन खूनी ख़ूनी मंजरों मंज़रों के चेहरे बदल के देखेंये नफरतों नफ़रतों के घेरे खुद ख़ुद ही मिटेंगे इक दिन
इस प्यार की डगर पे कुछ दूर चल के देखें
6.टूटे हुए हृदय की झंकार बॉंटता हूंबाँटता हूँसब फूल बॉंटते बाँटते हैं, मैं खार बॉंटता हूंख़ार बाँटता हूँये गर्मिये गर्मी-ए- मुहब्बत मिट जाये जाए न दिलों सेयारो इसी लिये लिए मैं अंगार बॉंटता हूंबाँटता हूँ
7.कुछ अंधेरे अँधेरे उठे रोशनी खा गयेगएचन्द झूठे शगल मन को बहला गयेगएगीत गुमसुम हुए, है रूआंसी ग.ज.लरूआँसी ग़ज़लकाव्य के मंच पर चुटकुले छा गयेगए
8.मेरी राहों में कांटे काँटे बिछा दीजियेदीजिएमेरी दुश्वारियों को बढा दीजियेबढ़ा दीजिएगर ग़र इसी से शहर बच सके , दोस्तोतो खुशी ख़ुशी से मेरा घर जला दीजियेदीजिए
9.भूली - बिसरी - सी इक कहानी हूहूँबहती ऑंखों आँखों का खारा पानी हू हूँ
तुम मुझे दिल में छिपा कर रख लो
गुजरे गुज़रे लम्हों की इक निशानी हूहूँ
</poem>
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