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| रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
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दिल से रक्खेंगे लगाकर हर निशानी आपकी
हम न भूलेंगे कभी भी मेहरबानी आपकी

तोड़ डाले सारे वादे सारी क़समें तोड़ दीं
तू ने तो मुझसे कहा था हूँ दिवानी आपकी

ज़िन्दगानी में कोई तो काम ऐसा कीजिये
हो मिसाली इस जहाँ में ज़िन्दगानी आपकी

आपने चाहा मुझे मैं आपके क़ाबिल न था
ख़ूब है महबूब मेरे क़द्रदानी आपकी

कह दिया मैंने ख़ता मेरी है लेकिन थी नहीं
सोचकर ये बढ़ न जाए बदगुमानी आपकी

आपकी रूदाद सुनकर चाँद-तारे रो दिए
क्यों न रोते सुन रहे थे मुहंज़बानी आपकी

भूल जाएगा ज़माना लैला-मजनू को 'रक़ीब'
जब सुनेगा हर किसी से ये कहानी आपकी
</poem>
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