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| रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
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दो सज़ा शौक़ से सज़ा क्या है
ये बताकर मेरी ख़ता क्या है

है ज़रूरी बहुत समझ लेना
बन्दगी क्या है और ख़ुदा क्या है

प्यार करता हूँ मैं नहीं मालूम
नारवा क्या है और रवा क्या है

है अमानत ये ज़िन्दगी उस की
ये बताओ की आपका क्या है

उसने शरमा के कान में मेरे
कुछ कहा है मगर कहा क्या है

दिल किसी का कभी नहीं रखता
इक मुसीबत है, आईना क्या है

एक मंज़िल हो जिनकी, इक मक़सद
साथ चलने में फिर बुरा क्या है

जब तसव्वर में हुस्न हो न 'रक़ीब'
शेर गोई में इस मज़ा क्या है
</poem>
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