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16:40, 7 जनवरी 2011 {{KKGlobal}}
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| रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
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<poem>
मौत इक दिखावा है मर के भी नहीं मरते
ज़िन्दगी के दीवाने मौत से नहीं डरते
डर है तुमको दुनिया का इश्क़ क्या करोगे तुम
इश्क़ में जो डरते हैं इश्क़ वो नहीं करते
वो भी क्या करें उन पर मेहरबाँ जवानी है
पाँव वो ज़मीं पर अब इसलिए नहीं रखते
प्यार करते हो, मुझे ज़िन्दगी भी कहते हो
फिर मेरी सितारों से माँग क्यों नहीं भरते
जान अपनी देते हैं भूख में मगर फिर भी
कुछ दरिन्द ऐसे हैं घास जो नहीं चरते
नफ़रतों के सागर में जो हसीन डूबे हैं
आँसुओं से वह आँचल तर कभी नहीं करते
मैं हबीब समझा था तुम 'रक़ीब' हो शायद
इसलिए मोहब्बत का दम कभी नहीं भरते
</poem>