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{{KKRachna
|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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'''''पलकों के तट चूमकर , कहे नयन-जलधार ।
बीते हैं पल दर्द के , हुआ नया भिनसार । ।
जीवन कहते हैं जिसे , है सुख-दुख का मेल ।
खुशियाँ दो पल जो मिलें,लेकर दुख भी झेल । ।
अब खूँटी पर टाँग दे ,नफ़रत -भरी कमीज़ ।
बोना है नव वर्ष में , मुस्कानों के बीज । ।
भाई ने परदेस से , किया बहिन को फोन ।
तेरी खुशियों से बड़ा ,मेरा जग में कौन । ।
घर में या परदेस में ,सबसे मुझको प्यार ।
सबके आँगन में खिले , फूलों का संसार ।
नए साल से हम कहें-करलो दुआ कुबूल ।
माफ़ करें हर एक की , जो-जो खटकी भूल । ।
मुड़-मुड़कर क्या देखना , पीछे उड़ती धूल ।
फूलों की खेती करो , हट जाएँगे शूल । ।
अधरों पर मुस्कान ले , कहता है नव वर्ष ।
छोड़ उदासी को यहाँ ,आ पहुँचा है हर्ष । ।'''
''

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