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मैं मौन रहूँ
 
तुम गाओ
 
जैसे फूले अमलतास
 
तुम वैसे ही
 
खिल जाओ
 
जीवन के
 
अरुण दिवस सुनहरे
 
नहीं आज
 
तुम पर कोई पहरे
 
जैसे दहके अमलतास
 
तुम वैसे
 
जगमगाओ
 
कुहके जग-भर में
 
तू कल्याणी
 
मकरंद बने
 
तेरी युववाणी
 
जैसे मधुपूरित अमलतास
 
तुम सुरभि
 
बन छाओ
 
अनमने दिन
जैसे भू-अगन
दिन आए फिर कराहों के
 
अभ्रकी धूप
 
यह धूप बताशे के रंग की
 
यह दमक आतशी दर्पण की
 
कई दिनों में आज खिल आई है
 
यह आभा दिनकर के तन की
 
फिर चमक उठा गगन सारा
 
फिर गमक उठा है वन सारा
 
फिर पक्षी-कलरव गूँज उठा
 
कुसुमित हो उठा जीवन सारा
 
यह धूप कपूरी, क्या कहना
 
यह रंग कसूरी, क्या कहना
 
अक्षत-सा छींट रही मन में
 
उल्लास-माधुरी क्या कहना
 
फिर संदली धूल उड़े हलकी
 
फिर जल में कंचन की झलकी
 
फिर अपनी बाँकी चितवन से
 
मुझे लुभाए यह लड़की
 
पहले की तरह
 
पहुँच अचानक उस ने मेरे घर पर
 
लाड़ भरे स्वर में कहा ठहर कर
''अरे. . . सब-कुछ पहले जैसा है
 
सब वैसा का वैसा है. . .
 
पहले की तरह. . .''
 
फिर शांत नज़र से उस ने मुझे घूरा
 
लेकिन कहीं कुछ रह गया अधूरा
 
उदास नज़र से मैं ने उसे ताका
 
फिर उस की आँखों में झाँका
 
मुस्काई वह, फिर चहकी चिड़िया-सी
 
हँसी ज़ोर से किसी बहकी गुड़िया-सी
 
चूमा उस ने मुझे, फिर सिर को दिया खम
 
बरसों के बाद इस तरह मिले हम
 
पहले की तरह
 
प्रतीक्षा
 
अभी महीना गुज़रा है आधा
 
शेष और हैं पंद्रह दिन
 
समय यह सरके कच्छप-गति से
 
नंदिनी तेरे बिन
 
जीवन खाली है, मन खाली
 
स्मृति की जकड़न
 
नीली पड़ गई देह विरह से
 
घेर रही ठिठुरन
 
मर जाएगा कवि यह तेरा
 
बिखर जाएगा फूल
 
अरी, नंदिनी, जब आएगी तू
 
बस, शेष बचेगी धूल
 
बदलाव
 
जब तक मैं कहता रहा
 
जीवन की कथा उदास
 
उबासियाँ आप लेते रहे
 
बैठे रहे मेरे पास
 
 
पर ज्यों ही शुरू किया मैं ने
 
सत्ता का झूठा यश-गान
 
सिर-माथे पर मुझे बैठाकर
 
किया आप ने मेरा मान
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