खुशबू सी आ रही है इधर ज़ाफ़रान की,<br />खिडकी खुली है गालिबन उनके मकान की.<br />हारे हुए परिन्दे ज़रा उड़ के देख तो,<br />आ जायेगी जमीन पे छत आसमान की.<br />बुझ जाये सरे आम ही जैसे कोई चिराग,<br />कुछ यूँ है शुरुआत मेरी दास्तान की.<br />ज्यों लूट ले कहार ही दुल्हन की पालकी,<br />हालत यही है आजकल हिन्दुस्तान की.<br />जुल्फों के पेंचो-ख़म में उसे मत तलाशिये,<br />ये शायरी जुबां है किसी बेजुबान की.<br />'नीरज' से बढ़कर और धनी है कौन,<br />
उसके हृदय में पीर है सारे जहान की.