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/* पवन - दूतिका */
== पवन - दूतिका ==
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बैठी खिन्ना यक दिवस वे गेह मे थी में थीं अकेली आके आँसू दृग-युगल में थें धरा को भिगोते ।।आई धीरे इस सदन में पुष्प-सद्गंध को ले ।प्रातः वाली सुपवन इसी काल वातायनों से ।।१।। 
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