|संग्रह=दयालु की दुनिया / वरयाम सिंह
}}
{{KKCatKavita}}<poem>यह कदमताल क़दमताल था हर कदमताल क़दमताल की तरह एक ही जगह पर।पर ।
झण्डा भी लहरा रहा था मुस्तैदी से
एक ही जगह पर।पर ।
नेता भी खड़ा था
एक ही जगह पर
तमाम उपलब्धियाँ, तमाम सफलताएँ,
तरह-तरह के दस्तावेज़ों में
पेश हो रही थीं
एक ही जगह पर।पर ।
कितना सुकून मिल रहा है
जिन्हें जल्दी थी कहीं पहुँचने की
इस सच्चाई तक आसानी से पहुँचने में
कि अच्छा है कहीं नहीं पहुँच पाने की निस्बत
खड़े रहना है एक ही जगह पर।पर ।
सारी लड़ाई अब इसी को लेकर
किस तरह टिके रहा जाए
एक ही जगह पर।पर ।</poem>