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जब भी इस शहर में कमरे से मैं बाहर निकला / गोपालदास "नीरज
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07:27, 24 जनवरी 2011
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जब भी इस शहर में कमरे से मैं बाहर निकला
मेरे स्वागत को हर एक जेब से खंजर निकला
क्या अजब है इंसान का दिल भी 'नीरज'
मोम निकला ये कभी तो कभी पत्थर निकला
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Manish81077
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