गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
बिछोह / बरीस पास्तेरनाक
3 bytes added
,
17:53, 26 जनवरी 2011
अंदर देखता है एक आदमी
अपने घर की ओर ।
वह अपना घर
पहचन
पहचान
नहीं सकता
एक उड्डयन की तरह था
उसकी प्रेयसी का चले जाना
अनिल जनविजय
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits