14 सितम्बर की तिथि मात्र हिन्दी दिवस के रूप में याद किये जाने का दिवस नहीं है। यह दिवस हिन्दी कविता जगत की एक ऐसी विभूति के निर्वाण का दिवस भी है जिसने मात्र 27 वर्ष के अपने जीवन काल में हिन्दी को ऐसी समृद्वशाली रचनायें दी जो अनेक विद्वजनों के लिये आज भी शोध का विषय बनी हुयी हैं। 21 अगस्त 1919 में ई0 में तत्कालीन गढवाल जनपद के चमोली नामक स्थान मे मालकोटी नाम के ग्राम में एक निष्ठावान अध्यापक श्री भूपाल सिंह बर्त्वाल के घर पर एक बालक का जन्म हुआ। (इनके जन्म की तिथि के संबंध में यह विवाद है कि यह 21 अगस्त 1919 है अथवा 20 अगस्त 1919। x<oky fo"ofo|ky; Jhuxj es <k0 gfjeksgu ds funsZ"ku esa गढवाल विष्वविद्यालय श्रीनगर मे डा0 हरिमोहन के निर्देषन मेंडा0 हर्षमणि भट्ट द्वारा निष्पादित शोध में यह प्रमाणित हुआ कि कविवर चन्द्र कुंवर बर्त्वाल की जन्म तिथि 21 अगस्त 1919 है ) उनके नाम के सम्बन्ध में भी डा0 हर्षमणि भट्ट द्वारा निष्पादित शोध में यह अवधारित हुआ कि कविवर चन्द्र कुंवर बर्त्वाल का असली नाम कुंवर सिंह बर्त्वाल था। श्री चन्द्र कुंवर की मां का दिया हुआ नाम श्रीचन्द्र था तथा उनके पिता का दिया हुआ नाम कुँवर सिंह था और इनका प्रसिद्ध साहित्यिक नाम है श्रीचन्द्रकॅुवर। इस प्रकार माँ और पिता दोनो की भावनाओं की रक्षा हो सके इसलिये उन्होंने अपना साहित्यिक नाम चन्द्रकॅुवर अपनाया था। वे अपनी माता पिता की प्रथम और इकलौती संतान थे।
उनके परम प्रिय मित्र पं0 शम्भू प्रसाद बहुगुणा के अनुसार उनकी प्राथमिक शिक्षा गाँव में ही हुई। तद्पश्चात पौड़ी गढ़वाल के मिशन कालेज (वर्तमान में मैसमोर इन्टर कालेज) से 1935 में उन्होंने हाई स्कूल किया और उच्च शिक्षा लखनऊ और इलाहाबाद में ग्रहण की। 1939 में इलाहाबाद से स्नातक करने के पश्चात लखनऊ विश्वविद्यालय में प्राचीन भारतीय इतिहास से एम0 ए0 करने के लिये प्रवेश लिया जहां उनके मित्र पं0 शम्भू प्रसाद बहुगुणा जी रहते थे। वे दोनो वहाँ साथ ही रहने लगे थे जहाँ श्री बहुगुणा ने उन्हें अत्यधिक स्नेह और संबल प्रदान किया। बांज और बुरांस की जड़ों से रिसता हुआ पानी पीने की आदत डाल चुके श्री बर्त्वाल से मैदानी क्षेत्रों की आपाधापी सहन न हो सकी और वे बीमार रहने लगे और अंततः इतना बीमार हुए कि 1941 के दिसम्बर माह में आगे की पढ़ाई छोड़कर अपने गाँव वापस लौट आए । लखनऊ से लौटकर उन्हें पंवालिया जाना पडा जो उनके जन्म ग्राम मालकोटी से कुछ दूरी पर स्थित था और मालकोटी से अधिक समृद्ध और प्राकृतिक शोभा से युक्त था। यह चमोली जनपद में रूद्रप्रयाग और केदारनाथ के बीच केदारनाथ मार्ग पर भीरी के नजदीक बसा ग्राम है जिसे बर्त्वाल परिवार ने सिंचित और अधिक उत्पादकता रखने वाली भूमि पर हरियाली और खुशहाली की उम्मीदों के साथ लिया था।