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जंगल का गीत / रमेश रंजक
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16:41, 27 जनवरी 2011
हवा धूल में बटमारीपन, छाया की तासीर गरम
सरमायेदारों के कपड़े, पहने घूम रहा मौसम
नद्दी-नालों की
ज़ंज़ीरें
ज़ंजीरें
हरियल टहनीदार नियम
न्यायाधीश पहाड़ मौन हैं, खा-पीकर रिश्वती रकम
सत्ता के जंगल की पत्ती-पत्ती बेईमान है !
अनिल जनविजय
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