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सुझाई गयी कविताएं

3,880 bytes added, 17:47, 15 अगस्त 2006
प्रस्तुतिः जयप्रकाश मानस
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ग्राम्य जीवन
टीपः कवि छायावाद कविता के जनक माने जाते हैं । स्वयं प्रसाद जी ने इन्हें छायवाद शब्द का प्रथम प्रयोक्ता माना था ।
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टीपः कवि छायावाद कविता के जनक माने जाते हैं । स्वयं प्रसाद जी ने इन्हें छायवाद शब्द का प्रथम प्रयोक्ता माना था ।
**************************00000000000**************************बद्र की ग़ज़लें   एक   कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बंधा हुआ ।  वो ग़ज़ल का लहजा नया-नया, न कहा हुआ न सुना हुआ ।   जिसे ले गई अभी हवा, वे वरक़ था दिल की किताब का,  कहीँ आँसुओं से मिटा हुआ, कहीं, आँसुओं से लिखा हुआ ।    कई मील रेत को काटकर, कोई मौज फूल खिला गई,  कोई पेड़ प्यास से मर रहा है, नदी के पास खड़ा हुआ ।    मुझे हादिसों ने सजा-सजा के बहुत हसीन बना दिया,  मिरा दिल भी जैसे दुल्हन का हाथ हो मेंहदियों से रचा हुआ ।    वही शहर है वही रास्ते, वही घर है और वही लान भी,  मगर इस दरीचे से पूछना, वो दरख़्त अनार का क्या हुआ ।    वही ख़त के जिसपे जगह-जगह, दो महकते होटों के चाँद थे,  किसी भूले बिसरे से ताक़ पर तहे-गर्द होगा दबा हुआ ।    दो    सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा ।  इतना मत चाहो उसे, वो बेवफ़ा हो जाएगा ।   हम भी दरिया हैं, हमें अपना हुनर मालूम है,  जिस तरफ़ भी चल पड़ेगे, रास्ता हो जाएगा ।    कितना सच्चाई से, मुझसे ज़िंदगी ने कह दिया,  तू नहीं मेरा तो कोई, दूसरा हो जाएगा ।    मैं खूदा का नाम लेकर, पी रहा हूँ दोस्तो,  ज़हर भी इसमें अगर होगा, दवा हो जाएगा ।    सब उसी के हैं, हवा, ख़ुश्बु, ज़मीनो-आस्माँ,  मैं जहाँ भी जाऊँगा, उसको पता हो जाएगा ।    तीन   हमारा दिल सबरे का सुनहरा जाम हो जाए ।  चराग़ों की तरह आँखें जलें, जब शाम हो जाए ।    मैं ख़ुद भी अहतियातन, उस गली से कम गुजरता हूँ,  कोई मासूम क्यों मेरे लिए, बदनाम हो जाए ।    अजब हालात थे, यूँ दिल का सौदा हो गया आख़िर,  मुहब्बत की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाए ।    समन्दर के सफ़र में इस तरह आवाज़ दो हमको,  हवायें तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाए ।  मुझे मालूम है उसका ठिकाना फिर कहाँ होगा,  परिंदा आस्माँ छूने में जब नाकाम हो जाए ।    उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो,  न जाने किस गली में, ज़िंदगी की शाम हो जाए ।    बशीर बद्र जयप्रकाश मानस