प्रस्तुतिः जयप्रकाश मानस
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ग्राम्य जीवन
टीपः कवि छायावाद कविता के जनक माने जाते हैं । स्वयं प्रसाद जी ने इन्हें छायवाद शब्द का प्रथम प्रयोक्ता माना था ।
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टीपः कवि छायावाद कविता के जनक माने जाते हैं । स्वयं प्रसाद जी ने इन्हें छायवाद शब्द का प्रथम प्रयोक्ता माना था ।
**************************00000000000**************************बद्र की ग़ज़लें एक कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बंधा हुआ । वो ग़ज़ल का लहजा नया-नया, न कहा हुआ न सुना हुआ । जिसे ले गई अभी हवा, वे वरक़ था दिल की किताब का, कहीँ आँसुओं से मिटा हुआ, कहीं, आँसुओं से लिखा हुआ । कई मील रेत को काटकर, कोई मौज फूल खिला गई, कोई पेड़ प्यास से मर रहा है, नदी के पास खड़ा हुआ । मुझे हादिसों ने सजा-सजा के बहुत हसीन बना दिया, मिरा दिल भी जैसे दुल्हन का हाथ हो मेंहदियों से रचा हुआ । वही शहर है वही रास्ते, वही घर है और वही लान भी, मगर इस दरीचे से पूछना, वो दरख़्त अनार का क्या हुआ । वही ख़त के जिसपे जगह-जगह, दो महकते होटों के चाँद थे, किसी भूले बिसरे से ताक़ पर तहे-गर्द होगा दबा हुआ । दो सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा । इतना मत चाहो उसे, वो बेवफ़ा हो जाएगा । हम भी दरिया हैं, हमें अपना हुनर मालूम है, जिस तरफ़ भी चल पड़ेगे, रास्ता हो जाएगा । कितना सच्चाई से, मुझसे ज़िंदगी ने कह दिया, तू नहीं मेरा तो कोई, दूसरा हो जाएगा । मैं खूदा का नाम लेकर, पी रहा हूँ दोस्तो, ज़हर भी इसमें अगर होगा, दवा हो जाएगा । सब उसी के हैं, हवा, ख़ुश्बु, ज़मीनो-आस्माँ, मैं जहाँ भी जाऊँगा, उसको पता हो जाएगा । तीन हमारा दिल सबरे का सुनहरा जाम हो जाए । चराग़ों की तरह आँखें जलें, जब शाम हो जाए । मैं ख़ुद भी अहतियातन, उस गली से कम गुजरता हूँ, कोई मासूम क्यों मेरे लिए, बदनाम हो जाए । अजब हालात थे, यूँ दिल का सौदा हो गया आख़िर, मुहब्बत की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाए । समन्दर के सफ़र में इस तरह आवाज़ दो हमको, हवायें तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाए । मुझे मालूम है उसका ठिकाना फिर कहाँ होगा, परिंदा आस्माँ छूने में जब नाकाम हो जाए । उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो, न जाने किस गली में, ज़िंदगी की शाम हो जाए । बशीर बद्र जयप्रकाश मानस