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एक चिकना मौन / अज्ञेय

24 bytes added, 13:44, 2 फ़रवरी 2011
दाह खोती
लीन होती हैं ।
उसी में रवहीन तेरा गूँजता है छंद : ऋत विज्ञप्त होता है ।
एक काले घोल की-सी रात
पुनीत
गहरी नींद की ।
उसी में से तू बढ़ा कर हाथ सहसा खींच लेता- गले मिलता है ।
</poem>
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