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{{KKRachna
|रचनाकार=एहतराम इस्लाम
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<poem>

चहरे की मुस्कान गई
मेरी भी पहचान गई

कैसी सभी सुशीला थी
जिसने कहा जो, मान गई

मूल्यों का संरक्षक था
मुफ्त ही जिसकी जान गई

जख्म से बच कर खुश हो तुम
गम है मुझको आन गयी

कैसी भोली सूरत थी
लेकर मेरा ध्यान गयी

बच्चों का अभ्यास हुआ
गौरैयों की जान गई

सोने की चिया हमको
देकर हिन्दुस्तान गयी

</poem>