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{{KKRachna
|रचनाकार=एहतराम इस्लाम
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<poem>

धन की राहें ढूंढ ली सत्ता की गलियां ढूढ़ ली
डूब मरने के लिए लोगों ने नदियाँ ढूढ़ ली

कितनी ही सदियाँ गवां दी एक लम्हे के लिए
एक लम्हे के लिए कितनी ही सदियाँ ढूढ़ ली

तुमने जिन आखों में कुछ लिखा हुआ पाया नहीं
हमने उनमें ढेर सारी पांडुलिपियाँ ढूढ़ ली

आपकी इच्छा ने ली करवट इधर और उस तरफ
आपकी बन्दूक के छर्रे ने चिड़िया ढूढ़ ली

पेश कर सकता हूँ अप शेरोन की माला एहतराम
भावनाओं में गुंथे शब्दों की लड़ियाँ ढूढ़ ली

</poem>