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19:29, 4 फ़रवरी 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=एहतराम इस्लाम
|संग्रह= है तो है / एहतराम इस्लाम
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{{KKCatGhazal}}
<poem>
पथ पे आयेंगे लोग जाने कब
सर उठाएंगे लोग जाने कब
आसुओं से उमड़ पड़े सागर
मुस्कुराएंगे कोग जाने कब
जख्म मुद्दत से गुदगुदाते हैं
खिल्खिलायेंगे लोग जाने कब
पेड़ काँटों के हो गए बालिग
गुल खिलाएंगे लोग जाने कब
है प्रतीक्षा में प्रात का सूरज
साथ जाएँगे लोग जाने कब
अपने बच्चों की बलि चढाने से
बाज़ आयेंगे लोग जाने कब
जख्म सहना है'एहतराम' गुनाह
जान पायेंगे लोग जाने कब
</poem>