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20:11, 4 फ़रवरी 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=आलोक श्रीवास्तव-१
|संग्रह=आमीन / आलोक श्रीवास्तव-१
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<poem>
हम तो ये बात जान के हैरान हैं बहुत
खामोशियों में शोर के तूफ़ान हैं बहुत
बाज़ार जा के खुद का कभी दाम पूछना
तुम जैसे हर दूकान में सामान हैं बहुत
अच्छा सा कामकाज खुली आँख से चुनो
ख़्वाबों के लेन देन में नुक्सान है बहुत
आवाज़ बर्तनों की घरों में दबी रहे
बाहर जो सुनने वाके हैं शैतान हैं बहुत
खुशहाल घर को जाने नज़र किसकी लग गई
हम लोग कुछ दिनों से परेशान हैं बहुत
आवाज़ साथ है न बदन का कहीं पता
अब के सफर में रास्ते सूनसान हैं बहुत
</poem>