वसनांत के बाद खलियाई जगहें ऐसे पपोटिया
जाती हैं
जैसे पेड़ भग—वान भग-वान इन्द्र की तरह सहस्त्र नयन हो
गए हों
घावों पर वरदान —सी -सी फिरतीं
वसंत की रफ़ूगर उँगलियाँ काढ़ती हैं पल्लव
सैंकड़ों बारीक पैरों से जितना कमाते हैं पादप
अधोगति के तम में जाकर पता लगाते हैं उन
जड़ों का
जिनके प्रियतम—सा प्रियतम-सा ऊर्ध्वारोही दिखता है अगला
वसंत