{{KKRachna
|रचनाकार=साहिर लुधियानवी
|संग्रह=तलखियाँ/ साहिर लुधियानवी}}<poem>मुसव्विर मैं तेरा शाहकार वापस करने आया हूं<br><br> अब इन रंगीन रुख़सारों में थोड़ी ज़िदर्यां भर दे<br>हिजाब आलूद नज़रों में ज़रा बेबाकियां भर दे<br>लबों की भीगी भीगी सिलवटों को मुज़महिल कर दे<br>नुमाया रग-ए-पेशानी पे अक्स-ए-सोज़-ए-दिल कर दे<br>तबस्सुम आफ़रीं चेहरे में कुछ संजीदापन कर दे<br>जवां सीने के मखरुती उठाने सरिनगूं कर दे<br>घने बालों को कम कर दे, मगर रख्शांदगी दे दे<br>नज़र से तम्कनत ले कर मिज़ाज-ए-आजिजी दे दे<br>मगर हां बेंच के बदले इसे सोफ़े पे बिठला दे<br>
यहां मेरे बजाए इक चमकती कार दिखला दे
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