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अशआर १ / साहिर लुधियानवी

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|रचनाकार=साहिर लुधियानवी
|संग्रह =तलखियाँ/ साहिर लुधियानवी
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<poem>
हरचन्द मेरी कुव्वते-गुफ़्तार है महबूस,
 
खामोश मगर तब‍अए-खुद‍आरा नहीं होती।
 
मा‍अमूरा-ए-एहसास मे है हश्र-सा बर्पा,
 
इन्सान को तज़लील गंवारा नहीं होती।
 
नालां हूं मै बेदारी-ए-एहसास के हाथों,
 
दुनिया मेरे अफ़कार की दुनिया नहीं होती।
 
बेगाना-सिफ़त जादा-ए-मंज़िल से गुज़र जा,
 
हर चीज़ सजावारे-नज़ारा नहीं होती।
 
फ़ितरत की मशीयत भी बडी चीज है लेकिन,
 
फ़ितरत कभी बेबस का सहारा नहीं होती।
</poem>
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