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14:59, 6 फ़रवरी 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=एहतराम इस्लाम
|संग्रह= है तो है / एहतराम इस्लाम
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{{KKCatGhazal}}
<poem>
हदें फलांगता ऊपर निकल गया कितना
जिसे उछाला गया वो उछल गया कितना
वो सोचता है हवन से उसे मिला क्या कुछ
मैं देखता हूँ मेरा हाँथ जल गया कितना
न कोई बाप न भाई न कोई माँ न बहन
हमारा तौर तरीका बदल गया कितना
पड़ा है राह में रफ़्तार तेज थी जिसकी
जो सुस्त गाम था आगे निकल गया कितना
किसी को दे गया धोखा खुद उसका साया तक
किसी को दूर का रिश्ता भी फल गया कितना
तेरी नज़र में अगर दोस्तों की कीमत है
पता न कर की तुझे कौन छल गया कितना
</poem>