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{{KKRachna
|रचनाकार=एहतराम इस्लाम
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<poem>

जीवित हूँ क्या अर्थ ? मुझे कुछ जीने का अहसास तो हो
रूह मेरी समझा जाता है जिसको मेरे पास तो हो

आप भी मेरी तरह समंदर शोलों के पी जायें मगर
मेरी तरह से आप के होठों पर भी सुलगती प्यास तो हो

लाख हमारे जिस्म हमारी रूहों से अब दूर सही
लेकिन अब मैं पास तुम्हारे और तुम मेरे पास तो हो

काटनी होगी बस आखों ही आखों में जो रात मुझे
कुछ न सही उस रात में तेरी यादों की बू बास तो हो

लाख न हो चलने की ताकत लाख न हो मंजिल नज़दीक
लेकिन अंधियारों के वन में राह दिखाती आस तो हो

</poem>