1,237 bytes added,
15:16, 6 फ़रवरी 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=एहतराम इस्लाम
|संग्रह= है तो है / एहतराम इस्लाम
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
भ्रस्ट है तो क्या हुआ कहिये सदाचारी है वह
आप यह मत भूलिए अफसर है अधिकारी है वह
हुक्म है खाना तलाशी का तो लुट ही जाईये
बोलिए मत कुछ लुटेरे से की सरकारी है वह
श्रृंखला कटु अनुभवों की टूट पायेगी कहाँ
द्रोपदी के जिस्म से लिपटी सुई सारी है वह
दस्तकें जेहनों के दरवाजे पे दे पाए न जो
आप ही कहिये भला कैसी गज़लकारी है वह
फर्क ब्रह्मण शूद्र में करता नहीं कुछ 'एहतराम'
धर्म से उसको गरज क्या घोर संसारी है वह
</poem>