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हरे सलवार कुर्ते में / अनिल जनविजय
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|संग्रह=राम जी भला करें / अनिल जनविजय
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हरे सलवार कुरते में
तुम आईं उस दिन
और मैं पुस्तकालय के
बाहर खड़ा था
तुमने मुझसे मिलने का
वायदा जो किया था
सिर तुम्हारा उस समय
हरी चुन्नी से ढका था
तुम आईं मेरे पीछे से
और धीमे से पुकारा
अनि...अनि...
सुनकर भी जैसे अनसुना
कर दिया मैंने
मैं तुम्हारे ध्यान में
मग्न बड़ा था
तुमने मुझे लाड़ में
हौले से कौंचा
मुड़कर जो देखा मैंने तो
हो गया भौंचक
वृक्ष जैसे पीछे कोई
मोती जड़ा था
(1996)
</poem>
अनिल जनविजय
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