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|संग्रह=राम जी भला करें / अनिल जनविजय
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जब-जब झाँका, मैंने भीतर
तेरे अंतस में
मैंने पाया
डूबी है तू प्रेम रस में
 
रश्मि रंगों से रंगा है मन
तन में छाई है घोर अगन
विकल कामना
सुगंध रति की भीनी
झिलमिल झलके वासना छवि झीनी
 
कर न पाए
मति को तू किसी तरह भी बस में
डूबी है तू प्रेम रस में
 
हृदय को सींचे प्रिय आलोक की छाया
मन को टीसे सजन मोह की माया
नेह वेदना
विगलित तन दिगंबरा
हरसिंगार-सी झरे स्मृति अंबरा
 
तू पाती है
सुख प्रसव का इस व्यथा अवश में
डूबी है तू प्रेम रस में
 
1999
</poem>
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