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(ये कविताएँ पहाड़ के दूर दराज़ क्षेत्रों के ऎसे लोकगीतों से प्रेरित हैं जिन्हें लोकक्विताएँ लोक कविताएँ कहना 
ज़्यादा सही होगा पर ये उनके अनुवाद नहीं हैं । )
तुम न गीत में थीं
उअस उस आवाज़ में जो उसे गाती है
न उन आँखों में
जो खिड़की के बाहर दिखाई देती है
निरंतर गिरती हुई
'''3.
 
रात में खुलता है पहाड़ का दरवाज़ा
 
रात में खुलती है पहाड़ की खिड़की
 
वहाँ से प्रवेश करता है प्रेम
 
दिखते हैं कुछ और दरवाज़े
 
दरवाज़ों के आगे
 
दिखती हैं कुछ और खिड़कियाँ
 
खिड़कियों के आगे ।
 
 
'''4.
 
तुम्हारे लिए आता हूँ मैं इस रास्ते
 
मेरे रास्ते में हैं तुम्हारे खेत
 
मेरे खेत में उगी है तुम्हारी हरियाली
 
मेरी हरियाली पर उगे हैं तुम्हारे फूल
 
मेरे फूलों पर मँडराती हैं तुम्हारी आँखें
 
मेरी आँखों में ठहरी हुईं तुम ।
 
 
'''5.
 
 
तुम्हारे चेहरे पर
 
एक पेड़ की छाया है
 
तुम्हारे चेहरे पर
 
एक पहाड़ की छाया है
 
तुम्हारे चेहरे पर
 
एक चंद्रमा की छाया है
 
तुम्हारे चेहरे पर
 
छाया है एक आसमान की ।
 
 
'''6.
 
प्रेम होगा तो हम कहेंगे कुछ मत कहो
 
प्रेम होगा तो हम कुछ नहीं कहेंगे
 
प्रेम होगा तो चुप होंगे शब्द
 
प्रेम होगा तो हम शब्दों को छोड़ आएँगे
 
रास्ते में पेड़ के नीचे
 
नदी में बहा देंगे
 
पहाड़ पर रख आएँगे ।
 
 
'''7.
 
 
पत्थरों के भीतर
 
छोड़ दो हमारे सिहरते शरीर
 
आत्मा अपने आप जन्म लेगी
 
जैसे वह आग
 
जिसे हमने पैदा किया था
 
जब वहाँ दो पत्थर थे ।
 
 
'''8.
 
 
आँधी में लगातार आते हैं
 
तिनके
 
धीरे धीरे एक घोंसला बनता है
 
 
तुम्हारी देह में उड़ती दो चिड़ियाँ
 
सो जाती हैं चुपचाप ।
 
 
'''9.
 
 
चुम्बन एक दिन
 
तुम्हारे सामने काग़ज़ पर
 
एक कविता बनेंगे
 
 
कविता एक दिन
 
चुम्बन बन जाएगी
 
काग़ज़ से उठकर ।
 
 
'''10.
 
 
कोहरे क्या तुम छँटोगे
 
ताकि मुझे दिख सके
 
तुमसे ढँका हुआ मेरा पहाड़
 
 
पहाड़ क्या तुम कुछ झुकोगे
 
ताकि मुझे दिख सके
 
तुम्हारी ओट में छिपा हुआ मेरा प्रेम ।
 
 
'''11.
 
 
रात रात रात
 
किसी किनारे से नदी के
 
बहने की आवाज़ आती है
 
अकेला मैं उठता हूँ
 
एक गिलास पानी पीकर सो जाता हूँ ।
 
 
'''12.
 
 
मैं सोचता रहा
 
और दूर चला आया
 
मैं दूर चला आया
 
और सोचता रहा
 
 
तुम सोचती रहीं और दूर चली गईं
 
तुम दूर चली गईं
 
और सोचती रहीं
 
 
इस तरह हमने दूरियाँ तय कीं ।
 
 
'''13.
 
 
जब बर्फ़ गिरेगी और सन्नाटा होगा
 
हम कहेंगे यह प्रेम है
 
 
जब बर्फ़ पिघलना शुरू होगी
 
जंगल में
 
हम कहेंगे इतनी ही थी इसकी उम्र ।
 
 
'''14.
 
 
चार बार हमें भूख लगेगी
 
पाँचवीं बार
 
हम कुछ खा लेंगे
 
 
चार बार प्यास लगेगी
 
पाँचवीं बार
 
हम पानी पी लेंगे
 
 
चार बार हम जागते रहेंगे
 
पाँचवीं बार
 
आ जाएगी नींद ।
 
 
'''15.
 
 
आधा पहाड़ दौड़ाता है
 
आधा दौड़ाता है हमारा बोझ
 
आधा प्रेम दौड़ाता है
 
आधा दौड़ाता है सपना
 
 
दौड़ते हैं हम ।
 
 
'''16.
 
 
बाहर एक बाँसुरी सुनाई देती है
 
एक और बाँसुरी है
 
जो तुम्हारे भीतर बजती है
 
और सुनाई नहीं देती
 
 
एक दिन वह चुप हो जाती है
 
तब सुनाई देता है उसका विलाप
 
उसके छेदों से गिरती है राख ।
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