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पतंगों से / अक्कितम

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|रचनाकार=निर्मला पुतुल अक्कितम |संग्रह=अक्कितम की प्रतिनिधि कविताएँ / अक्कितम
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<Poem>
आग में कूदकर मरने के लिए या
आग खाने की लालसा में
आग की ओर समूह में
दौड़े जा रहे हैं छोटे पतंगे?
आग में कूद कर मर जाने ले लिए ही
दुनिया में बुराइयाँ होती हैं क्या?
 
पैदा होते ही
भर गई निराशा कैसे?
 
खाने के लिए ही है यह जलती हुई आग
यदि तुम यही सोच रहे हो
तो फिर निखिलेश्वर को छोड़कर
तुमसे कुछ भी कहना नहीं।
 
विवेक पैदा होने तक अब हर कोई
बिना पंख वाला ही बना रहे।
 
'''हिन्दी में अनुवाद : उमेश कुमार सिंह चौहान'''
</poem>
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