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‘ठकुर सुहाती’ जुड़ी जमात,
यहाँ यह मजा ।
मुँहदेखी, यदि न करो बात
तो मिले सजा ।
सिर्फ बधिर, अंधे, गूँगों –
के लिए जगह ।
डरा नहीं, आये तूफान,
उमस क्या करुँ ?
बंधक हैं अहं स्वाभिमान,
घुटूँ औ’ मरूँ
चर्चाएँ नित अभाव की –
शाम औ’ सुबह।
केवल पुंसत्वहीन, क्रोध,
और बेबसी ।
अपनी सीमाओं का बोध
खोखली हँसी
झिड़क दिया बेवा माँ को
उफ्, बिलावजह ।
'''पल्लू की कोर दाब दाँत के तले'''
पल्लू की कोर दाब दाँत के तले
कनखी ने किये बहुत वायदे भले ।
कंगना की खनक
पड़ी हाथ हथकड़ी ।
पाँवों में रिमझिम की बेडियाँ पड़ी ।
सन्नाटे में बैरी बोल ये खले,
हर आहट पहरु बन गीत मन छले ।
नाजों में पले छैल सलोने पिया,
यूँ न हो अधीर,
तनिक धीर धर पिया ।
बँसवारी झुरमुट में साँझ दिन ढले,
आऊँगी मिलने में पिय दिया जले ।