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बचपन मेँ में परियाँ उठा ले जाती थीँ थीं चाँद परमाँ को ख़बर भी नहीँ नहीं होती थीसारी रात गुज़र जाती थी सितारों की महफिल मेँमें
फूल मुझे देखकर मुस्कुराया करते थे
मुझे ख़ुश रखने के लिये तरह-तरह के जतन किए जाते थे
मगर अब सब ख़त्म हो गया
अब कोई मेरे हँसने पर नहीँ नहीं मुस्कुराता
अब कोई मेरे रोने पर मुझे नहीँ बहलाता
परियाँ भी नहीं आतीं
फूल भी नहीँ मुस्कुराते
तितलियाँ मेरे घर का रस्ता भूल गयींगईं
फरिश्ते आसपास तो रहते हैं मगर अब वो मुझे बोसा नहीँ नहीं देते
एक अजनबी ग़म घेरे रहता है मुझे
मैं बड़ा हो गया तो छीन लिया गया मुझसे वो सब कुछ
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