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सुदामा चरित / नरोत्तमदास / पृष्ठ 11
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10:22, 20 फ़रवरी 2011
भूमि कठोर पै रात कटै कहाँए कोमल सेज पै नींद न आवत ।
कैं जुरतो नहिं कोदो सवाँ प्रभुए के परताप तै दाख न भावत ।।119।।
धन्य धन्य जदुवंश - मनि, दीनन पै अनुकूल।
Dr. ashok shukla
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