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इतनी तेज़ हवाएँ दे / विनय मिश्र
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,
15:47, 25 फ़रवरी 2011
शापों का संत्रास मिटे,
दे कुछ और कथाएँ दे ।
शब्दों का परिहास न हो,
ऐसी परिभाषाएँ दे ।
अनिल जनविजय
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